मंगल भात पूजा
मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि के स्वामी हैं, इसलिए जिन व्यक्तिओ बहुत क्रोध आता है या मन ज्यादा अशांत रहता है उसका कारण मंगल ग्रह की उग्रता माना जाता और यह मंगल भात पूजा कुंडली में विद्धमान मंगल ग्रह की उग्रता को कम करने के लिए की जाती है, यह पूजा उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर में नित्य होती है, जिसका पुण्य लाभ समस्त भक्तजन प्राप्त करते है।
Mangal Puja in Ujjain or We can say Mangal Bhat puja in Mangal Nath Temple of Ujjain is a kind of puja i.e worship that is mainly performed for the person who became uncontrolled due to their anger, its reason the movement of planets in their horoscope.
मंगल भात पूजा किसके द्वारा करवाई जानी चाहिए ?
मंगल भात पूजा पूरी तरह से आपके जीवन से जुडी हुयी है इसलिए इस पूजा को विशिस्ट, सात्विक और विद्वान ब्राह्मण द्वारा गंभीरता पूर्वक करवानी चाहिए, पंडित श्री रमाकांत चौबे जी को इस पूजा का महत्त्व और विधि भली भांति से ज्ञात है और अभी तक इनके द्वारा की गयी पूजा गयी पूजा भगवान शिव की कृपा से सदैव सफल हुयी है।
मंगल भात पूजा क्यों करवानी चाहिए
कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है उसी को ज्योतिष की भाषा में मंगल दोष कहते है, मंगल दोष कुंडली के किसी भी घर में स्थित अशुभ मंगल के द्वारा बनाए जाने वाले दोष को कहते हैं, जो कुंडली में अपनी स्थिति और बल के चलते जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, तो वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ अवश्य करवाए, जैसा की उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है इस लिए मंगल दोष को निवारण के लिए मंगल भात पूजा को उज्जैन में ही करवाने से अभीस्ट पुण्य एवं फल प्राप्त होता है.
मंगल भात पूजा किसको करवानी चाहिए ?
वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक के जन्म चक्र के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में मंगल हो तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ जातक मांगलिक कहा जाता है अथवा इसी को मंगल दोष भी कहते है. यह स्थिति विवाह के लिए अत्यंत अशुभ मानी जाती है, ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में एक मांगलिक को दूसरे मांगलिक से ही विवाह करना चाहिए. अर्थात यदि वर और वधु दोनों ही मांगलिक होते है तो दोनों के मंगल दोष एक दूसरे से के योग से समाप्त हो जाते है. किन्तु अगर ऐसा किसी कारण से ज्ञात नहीं हो पाता है, और किसी एक की कुंडली में मंगल दोष हो तो मंगल भात पूजा अवस्य करवा लेनी चाहिए. मंगल दोष एक ऐसी विचित्र स्थिति है, जो जिस किसी भी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसे बड़ी ही अजीबोगरीब परिस्थिति का सामना करना पड़ता है जैसे संबंधो में तनाव व बिखराव, घर में कोई अनहोनी व अप्रिय घटना, कार्य में बेवजह बाधा और असुविधा तथा किसी भी प्रकार की क्षति और दंपत्ति की असामायिक मृत्यु का कारण मांगलिक दोष को माना जाता है. मूल रूप से मंगल की प्रकृति के अनुसार ऐसा ग्रह योग हानिकारक प्रभाव दिखाता है, आपको वैदिक पूजा-प्रक्रिया के द्वारा इसकी भीषणता को नियंत्रित करने के लिए उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर में यह पूजा करवानी चाहिए।
मंगल भात पूजा की कथा
शास्त्रों में मंगल को भगवान शिव के शरीर से क्रोध के कारण निकले पशीने से उत्पन्न माना जाता है, इसकी कथा इस प्रकार से है, भगवान शिव वरदान देने में बहुत ही उदार है, जिसने जो माँगा उसे वो दे दिया लेकिन जब कोई उनके दिए वरदान का दुरूपयोग करता है जो प्राणिओ के कल्याण के भगवान् शिव स्वयं उसका संघार भी करते है, स्कन्ध पुराण के अनुसार उज्जैन नगरी में अंधकासुर नामक दैत्य ने भगवान् शिव की अडिग तपस्या की और ये वरदान प्राप्त किया कि मेरा रक्त भूमि पर गिरे तो मेरे जैसे ही दैत्य उत्पन्न हों जाए। भगवान शिव तो है ही अवढरदानी दे दिया वरदान, परन्तु इस वरदान से अंधकासुर ने पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मचा दी..सभी देवता, ऋषियों, मुनियो और मनुष्यो का वध करना शुरू कर दिया…सभी देवगढ़, ऋषि-मुनि एवं मनुष्य भगवान् शिव के पास गए और सभी ने ये प्रार्थना की- आप ने अंधकासुर को जो वरदान दिया है, उसका निवारण करे, इसके बाद भगवान शिव जी ने स्वयं अंधकासुर से युद्ध करने और उसका वध का निर्णय लिया । भगवान् शिव और अंधकासुर के बीच आकाश में भीषण युद्ध कई वर्षों तक चला ।
युद्ध करते समय भगवान् शिव के ललाट से पसीने कि एक बून्द भूमि के गर्भ पर गिरी, वह बून्द पृथ्वी पर मंगलनाथ की भूमि पर गिरी जिससे भूमि के गर्भ से शिव पिंडी की उत्पत्ति हुई और इसी को बाद में मंगलनाथ के नाम से प्रसिद्दि प्राप्त हुयी। युद्ध के समय भगवान् शिव का त्रिसूल अंधकासुर को लगा, तब जो रक्त की बुँदे आकाश में से भूमि के गर्भ पर शिव पुत्र भगवान् मंगल पर गिरने लगी, तो भगवान् मंगल अंगार स्वरूप के हो गए । अंगार स्वरूप के होने से रक्त की बूँदें भस्म हो गयीं और भगवान् शिव के द्वारा अंधकासुर का वध हो गया । भगवान् शिव मंगलनाथ से प्रसन्न होकर २१ विभागों के अधिपति एवं नवग्रहों में से एक गृह की उपाधि दी ।
शिव पुत्र मंगल उग्र अंगारक स्वभाव के हो गए.. तब ब्रम्हाजी, ऋषियों, मुनियो, देवताओ एवं मनुष्यों ने सर्व प्रथम मंगल की उग्रता की शांति के लिए दही और भात का लेपन किया, दही और भात दोनो ही पदार्थ ठन्डे होते है, जिससे मंगल ग्रह की उग्रता की शांति होती हैं। इसी कारण जिन प्राणिओ की कुंडली में मंगल ग्रह अतिउग्र होता है उनको मंगल भात पूजा करवानी चाहिए, इस पूजा का उज्जैन में करवाने के कारण यह अत्यंत लाभदायी और शुभ फलदायी होती है। इसी कारण मंगल गृह को अंगारक एवं कुजनाम के नाम से भी जाने जाते है ।